बिमोचन – पुरखा के चिन्हारी

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श्री प्यारे लाल देशमुख जी के तीसरइया काव्य कृति हरे पुरखा के चिन्हारी। जेमा कुल जमा डेढ़ कोरी रचना समोय गे हे। किताब के भूमका डॉ. विनय कुमार पाठक जी कम फेर बम सब्द के कड़क नोई म बांधे छांदे हे। जेन कबिता ल किताब के पागा बनाए गे हे वो हॅ आखरी-आखरी म हे। शीर्षक कहूं ले लेवय फेर शीर्षक के सार्थकता हॅ रचना अउ रचनाकार के सार्थकता ल सिध करथे। आखरी म होके के घला पुरखा के चिन्हारी हॅ सहींच में कवि अउ ओकर कृत्तित्व के सार्थतकता ल डाहकी बजावत बतावत हे। कवि के हिरदे म अपन ग्राम देवता, सीतला मइया, बर-पीपर, तुलसी चौरा के प्रति अतेक मया पलपलावत हे के वोह ओला अपन पुरखा के चिन्हारी मानथे। चिन्हारी उही ल कहे जाथे जउन बिना कोनो मोल भाव के अपन मया के स्वरूप अपन ले छोटे ल देय जाथे। हमर पुरखा मन ले हमन इही तो पाय हन जेन हमर संपूर्ण छत्तीसगढ़ के पहीचान हवे अउ वो हे- हमर संस्कृति अउ संस्कार , हमर बर पीपर , खेत खार , डीह डोंगरी, नदिया नरवा अउ तीज तिहार। जेन हॅ अपन संस्कृति ल पोटार संभार के रखे सकथे उही हॅ आंधी तुफान म घला अपन पहिचान बनाये राखे सकथे। जेन हॅ भूॅंइया अउ गाय ल महतारी मान सकथे उही सरवन बेटा कहाए के अधिकारी होथे। ए लिहाज म प्यारे लाल जी हॅ सहीच म ठेठ गॅंवइहा कवि हरे। अउ वोहू हॅ अपन अंतस के आरो ले ए उद्गार निकालथे के – ‘मोर नानपन गांव के धूर्रा माटी म खेलकूद के हरियाइस इंहा के रोटी पीठा , बोली भाखा, तीज तिहार, देवता धामी अउ पुरखा मन के आसीस मोर नस नस मा समाय हे।’
पुरखा के चिन्हारी ल पढ़त पढ़त कवि के गाय बरोबर निश्छल मन सहज सरल अउ निर्मल छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक विचारधारा स्पष्ट रूप से दिखथे। किताब भर म कोनो जघा कवि के बनावटीपन चिटिक नइ दिखय। कवि सर्व धर्म समभाव के भावना ले चोरोबोरो भींजे छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसढ़ी ल अंतस के गहरई तक मया करथे तभे तो वोह झलमला के गंगा मइया ल सुमरथे त एक कोती गुरू घासीदास के गिरौदपुरी के घला महिमा गाथे। राम के ममा गांव म रमायन जुग म ले जाथे उही किसिम छत्तीसगड़ महतारी के सिंगार म छत्तीसगड़ के चारो कोन्हा के दरसन कराथे त कभू भोले संग पार्वती के गोठ सुनाथे। कवि अपन जोगिया झोली म छत्तीसगढ़ के परे डरे हरेक जिनिस ल बिन के धर लेहे अउ हरेक जिनिस ले वोह मया घलो गजब करथे। तभे तो जय गंगान के माधयम ले छत्तीसगड़ के महिमा गावत छत्तीसगढ़ी गहना , गोदना , साग भाजी , गॅवई के रोटी , गांव के जिनगानी अउ इहां तक के चिरइया के फूल उपर रचना करथे। उहें सुराज अउ छत्तीसगड़ के उपर घला पोठ कलम घिसथे।
छत्तीसगड़ के गोदना हॅ आज टैटू बनके दुनिया ल मोहि डारे हे कवि कहिथे –
चाॅदी के बिछिया खियाही , सोन के हार ।
मरे के संगे जाही , गोदना सिंगार।।
गोदना हॅ सिरिफ सिंगार के प्रतीक नोहय। एमा हमर छत्तीसगढ़ के धार्मिक मान्यता घलो जुड़े हवय
भवसगरी ले लगाही , रमरमहा पार ।।
हमर अभी के समाज अउ वातावरन भुन्नाटी मारत अतेक बदले जावत हे के हम अपने संस्कृति सभ्यता समाजिक रीत रिवाज अउ इहां तक के अपने फाइदा के कतको बात ल बिसराए जावत हवन। वइसने गोदना के बैग्यानिक महत्तम के सुरता करावत कवि कहिथे –
कनिहा माड़ी म गोदाले , कहिथे सियान गा।
बात के बिमारी बर , हवय राम बान गा।
एकर संगे संग कवि समे के धार म बोहावत समाज के दसा अउ दिसा ल लेके घलो चिंतित लगथे
गोदना म घलो परगे , फेसन के मार।।
थोरिक आगू बढ़े म कवि के अंतरदृस्टि अउ अंतस के छटपटाहट हॅ समाजिक बातावरन के डारा ले कूदके पर्यावरन के प्रति चिंतित हो जथे अउ सावचेत करत कहिथे –
रूखराई ले हे जिनगानी अउ सांसा के तार जी।
फरिहर हवा पानी के बिना दिखय, मनखे सब बीमार जी।
कवि के ए छटपटाहट अउ पीरा हॅ कलबलाके खडा़ हो जथे जब अपन तीर तखार के वातावरन ल गुंगवावत धुॅगियावत देखथे तब चिंता करत कहि परथे
कतको ल लीलत हे मउहा के पानी।
किताब ल पढ़त अइसे लगथे के कबि के मन हॅ छत्तीसगढ़ के गांव गली खेत खार धूर्रा माटी म खेलत इही म रच बस गे हे। तभे तो वोह आगे असाड़, सावन के गीत, तीजा पोरा, संगी फागुन आगे, जाड़ के महीना अउ अलग से जाड़ उपर ओसरी पारी ले कलम चलावत जाथे जिहां ‘‘ मिहनत के गीता पढ़य भुइयां के भगवान ‘‘ कहिथे उहें गीता के संदेस सुनावत करम के महातम घला बताथे
घाम पानी अउ जाड़़काला संग, जनम के हमर मितानी।
हमर पसीना पी के हांसय अनपूरना महारानी।।
कहत मिहनत के प्रति अपन अगाध सरद्धा बोहवाथे।
हरेक तीज तिहार के अपन अपन महत्तम होथे। फेर नारी परानी मन बर सबले बड़े तिहार तीजा होथे। साल बछर म एक घॅव किंजर फिरके आए ए तिहार हॅ छत्तीसगड़ के जम्मो बहिनी माइ मन बर जीयत मरत के तिहार होथे। तीजहारिन मन बर तीजा पोरा के आगू म संसार के सरी सुख गारद हे। तभे तो तीजहारिन हॅ लेवइया आए के पहिली अगोरा करे लागथे
घेरी भेरी परवा म, कउॅवा नरियावत हे।
दाई गोठियावत होही , गोड़ खजुवावत हे।।
इही वो बेरा होथे जब एक नारी मइके ले ससुरार जाए के बाद पूर्णरूप से सर्वाधिकार के साथ मइके के सबो सुख ल सम्मुख अपन झोली म भरे पाथे। जिहां मइके के मतलब संगी सहेली बचपन यौवन के संगे संग जिनगी के भूत भविस अउ वर्तमान समाय रहिथे। एक सिक्का के दू पहलू होथे तहसे खुसी के संग ओकर छिने के डरो समाय रहिथे। कोनजनी धनी जावन देही के नहीं । उही किसिम ले धनी ल घलो अपन परम पियारी के बिछोह के डर हो जाथे। कवि हॅ उहू मेर ल झांके बर नइ छोड़य। कहिथे
चोर ले मोटरा आगू, धनी खिसियावत हे।
कवि हॅ अपन नामे कस प्रकृति के गजब सुग्घर मानकीकरन करत दिखथे जइसे
नदिया नरवा मन हा पारय किलकारी।
बंभरी मन पहिरे हे सोनहा के बारी।।
कभू कहिथे – झिंगुर गाना गाए , मेचमा खेलत हे हरदानी
एक बानगी अउ –
नेवते बर कोयली हॅ भुलागे
झिथरी बोईर बम ललियागे
अमली फर करे गोहार
कहत मानव के सुभाविक गुन के बड़ सुग्घर अउ चतुरई ले बरनन करथे। संगे संग एहू लिखथे
गॅहू मेछर्रा दांत निपोरे।
राहेर के कनिहा हा डोले।।
कवि हॅ बेटी बेटा म भेद नइ करय। दूनो ल बरोबर जान के बरोबर मया दुलार देना चाहथे। बेटी बेटा बर समानता के भाव लिए ए पंक्ति देखव
सुरूज असन बेटा तुंहर , अॅगना के उजियारा हे।
अंधियारी जिनगी बर बेटी , चंदा घलो सहारा हे।।
उही किसम ले कन्या भ्रून हत्या के घोर बिरोधी अउ नारी ससक्तीकरन के कट्टर समर्थक हे। कन्या भ्रून के हत्यारा मन ल चेतावत कहिथे के –
अपने रद्दा म रूंधत हन, हम कांटा के बारी।
फूल बिना फर कहां ले पाहू, कइसे चलही गुजारा हे।
जइसे सुंतरता के महात्तम ल उही समझ सकथे जेन हॅ गुलामी भोगे रहिथे। वइसने जिनगी म ठगड़ी के कलंक अउ ओकर पीरा के छटपटाहट के बीच जॅचकी के गुरतुर पीरा ल सहीके महतारी बने के सुख ल नारी मन ही समझ सकथे। सुभाविक हे के वो नारी के मया हॅ अइसने लोरी अउ असीस बनके हिरदे के अतल गहरई ले फोहारा कस बोहाय लगथे
तोर हाॅसी म हमर जिनगी के डोर हे।
रोए म रात कुलुप हांसे मा अंजोर हे।।
गांव के गुड़ी म बइठे सियान कस कवि के नजर चारो कोती हे अउ ओकर चिंतन हॅ चउॅक म लगे सीसी टीबी केमरा कस चारो मुड़ा घुमरत हे। ए वैस्वीकरन के समे म मनखे एक ठउर ले दूसर ठउर जाथे त संग म अपन समाजिक बेवहार अउ आबहवा के कुछु अंस ल घलो लेके आथे जाथे। समाजिक रीत रिवाज बात बेवहार अउ संसकृति हॅ एक ठउर ले दूसर ठउर , एक समाज ले दूसर समाज अइसने संचरथे। ए छत्तीसगढ हॅ अउ खासकर भेलइ जेन हॅ लघु भारत कहाथे वइसन समाजिक संचरन ले कइसे अछूता रहि सकथे। बने बने निभगे तब ठीक हे नइते जब बात गड़बड़ाथे तब कबि के आतमा ले ‘‘ बाहिर के सिध होगे ‘‘ सीर्सक के माध्यम ले उम्हियावत पीरा हॅ अइसने फूट परथे
घर बइरी परोसी हित होगे।
यहा कइसन हमर मन के रित होगे।।
जब कवि देखथे अइसन इसथिति के जुमेदार कोनो दूसर नइहे हमी हवन। अउ सोचे भर म बात
नइ बनय। पानी मुड़ ले उपर होय जात हे तब हमरे कमजोरी ल देखावत आहवान करत कहिथे
कब तक ले अइसने बने रहिहू गा गरवा।
अंगरी ला धरके ओमन धरत हावे मुरवा।।
किताब के आखिर म कवि बेरा निचट करारी हे के माधयम ले अपन धार्मिकता के सबूत देथे। जेन धार्मिकता ल हमन अपन पुरखा के चिनहारी के रूप बिरासत म पाए हवन। किताब भर म कवि हॅ कोनो मेर अपन धार्मिकता ल थोरको नइ छोड़े हे। इॅहा तक के मया के गीत – ‘तोर गीत गावत हे ‘ म घला अपन मया के उद्गार धरमके अंगरीच धरे धरे करथे –
मंदिर के घंटी जस लागे तोर हांसी।
इही धार्मिकता जब नस नस म बस जाथे तब कवि ल कन कन म भगवान दिखे लगथे-
गॉंव के कुन्दरा मंदिर लागे , देवता असन रहइया।
अइसे तो एह रचनाकार के तीसरइया किताब हरे। एमा रचनाकार हॅ रचना काल अउ समे के हिसाब से रचना अउ रचनाधर्मिता ले आगू बाढ़े के थोरको उदिम नइ करे हे। किताब के कोनो रचना हॅ गॉंव के मेड़ो ल नइ लांघे हे। जबकि ए भूमंडलीकरन के जुग म जिंहा रोज नवा नवा समस्या जइसे प्राकितिक आपदा , जनसंख्या बृध्दि के परिनामस्वरूप उपजे बेरोजगारी अउ बेरोजगारी के गरभ म छुपे नाना परकार के मानवीय अपराध, भ्रष्टाचार, दहेज, सुरसा सहीं मुहॅू फारे मॅहगई , समाज म बाढ़त उॅचनीच के खाई ए सब समसमायिक दसा म रचनाकार के दृष्टिपात नइ होए पाइस। एकर ले एहू अनमान लगाए जा सकथे के या तो रचना पुराना होई जेह कोई कारण से देरी म अब प्रकासित होइस या तो रचनाकार अपन ठेठ गॅवइहापन ल छोड़के कुंवा के मेचका कस ओतके ल अपन संसार समझ बाहिर नइ आना चाहत होही। जबकि इही हॅ समे के जबर मांग हे। काबर के साहित ह समाज के दरपन होथे अउ साहितकार के धरम होथे के समाज ल ओकर सही रूप देखाके ओकर दसा दिसा म सुधार करे के उदिम करय। एकर खातिर हमला रचनाकार के अवइया संग्रह के अगोरा करे बर परही।
-धर्मेन्‍द्र निर्मल
ग्राम पोस्ट कुरूद भिलाईनगर
जिला दुर्ग (छ.ग.) 490024

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